Major-festivals-of-Chhattisgarh | छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्व
छत्तीसगढ़ में साल भर में मनाए जाने वाले प्रमुख MAJOR FESTIVALS OF CHHATTISGARH पर्व या त्यौहार या उत्सव जिसे छत्तीसगढ़ के हर निवासी जानते हैं फिर भी हमारे इस पोस्ट के द्वारा छत्तीसगढ़ में कौन-कौन से त्योहार मनाए जाते हैं कि बारे में लिखा गया है यदि हमारा यह पोस्ट आपको अच्छा लगे तो इसे व्हाट्सएप टेलीग्राफ में शेयर करें ताकि छत्तीसगढ़ के अन्य लोग छत्तीसगढ़ के इस त्योहारों के बारे में और अधिक जान पायें
Major-festivals-of-Chhattisgarh |
नवरात्रि (चैत्र) :- हिंदुओं का नया वर्ष चैत्र माह से प्रारंभ होता है इस माह के पहले दिन से ही दुर्गा काली आदि मंदिरों में मनोकामना ज्योति प्रज्वल किया जाता है तथा 9 दिनों तक विशेष पूजा पाठ किया जाता है इन 9 दिनों का खास महत्व होने के कारण माता के मंदिरों में श्रद्धालु दर्शकों की भीड़ रहती है मंदिर स्थल के आसपास मेला भी लगता है जिसे चित्र मेला कहा जाता है
अक्ति :- इस दिन लड़कियां पुतरा पुतरी ( पुतला -पुतली ) कभी बारा चाहते हैं इसी दिन से बीज बोने का प्रारंभ होता है
रथ यात्रा :- आषाढ़ मास में भगवान जगन्नाथ सुभद्रा बलभद्र की पूजा कर रथयात्रा निकाली जाती है
दशहरा :- जगह-जगह रावण के पुतले का दहन किया जाता है
देवारी :- दीपावली का त्यौहार इस पर्व को छत्तीसगढ़ समेत पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है हर्ष और उल्लास का पर्व दीपावली दीप और उजाले पर्व दीपावली
गौरी गौरा पूजा :- दीपावली के समय शंकर पार्वती की पूजा की जाती है
गोवर्धन पूजा :- दीपावली के दूसरे दिन गाय बैल है शादी की पूजा की जाती है खिचड़ी खिलाई जाती है
मातर :- दीपावली के तीसरे दिन रावण जाती द्वारा घर-घर पहुंचकर नित्य किया जाता है
जेठवनी :- तुलसी विवाह के दिन तुलसी की पूजा की जाती है
छेरछेरा :- चैत्र पूर्णिमा को छेरछेरा कोठी के धान ला हेर हेरा कहते हुए घर-घर लोग मांगते जाते हैं इस दिन अनेक धार्मिक स्थलों पर मेला भी लगता है
होली :- फागुन में होली का त्यौहार छत्तीसगढ़ समय पूरे भारत में मनाया जाता है या रंगों का त्योहार है इसमें गुलाल तथा अनेक विधि से बनाए गए रंगों को लगाया जाता है एवं खुशी मनाया जाता है
दंतेश्वरी :- यह पर्व बस्तर के जनजातीय लोग द्वारा मनाया जाता है या बस्तर का दशहरा भी कहलाता है इसमें मां दंतेश्वरी की पूजा 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों द्वारा की जाती है लड़कियां नवीन वस्त्र को धारण करती है तथा बालों में फूल लगाती है लड़के नवीन पगड़ी धारण करते हैं
मेघनाद :- या पूर्व गोंड जनजाति का है इसे फागुन माह के प्रथम पक्ष में मेघनाथ की पूजा कर मनाया जाता है मेघनाथ रावण पुत्र नहीं गोड़ों में मेघनाथ को सर्वोच्च देवता माना जाता है आता उसका एक ढांचा बना कर चारों खंभों पर एकता लगाकर उसके मध्य में क्षेत्र किया जाता है इस चित्र से एक पांचवा खंबा निकालते हैं इस खंभे के ऊपर एक बल्ली इस प्रकार बांधी जाती है कि बल्ली चारों दिशाओं में घूम सकें आदिवासी इस बलि से लटककर चक्कर लगाते हैं
काक्सार :- यह अबूझ मारियो द्वारा मनाया जाता है इसमें लड़के लड़कियां नाच गाना कर रात्रि व्यतीत करते हैं इसके अलावा बस्तर का सबसे लंबा 65 दिनों तक चलने वाला दशहरा पर्व गोंचा पर्व, जगार, धनकुल रसनवा आदि प्रमुख है
हरेली :- सावन महीने में मनाया जाता है सावन महीने के पहले रविवार को गांव बनाया जिसे सवनाही बरोना भी कहते हैं पर्व को मनाते हैं जिसमें फसल को रोग मुक्त करने के लिए गांव के बैगा द्वारा ग्राम देवी देवताओं की पूजा पाठ होती है
नाग पंचमी :- इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है
रक्षाबंधन :- यह त्यौहार छत्तीसगढ़ के अलावा पूरे भारत में मनाए जाने वाला त्यौहार है इसे सावन के महीने में मनाते हैं इस दिन बहन द्वारा भाई को राखी बांधी जाती है
कमरछठ :- इस दिन माताएं अपने बेटों के सुखी जीवन के लिए उपवास रखती है और जमीन में गड्ढा खोदकर पूजा अर्चना कर दी है इस दिन पर पसहेर चावल दही एवं अन्य छह प्रकार की भाजी, लाई, महुआ आदि का ही सेवन किया जाता है पसहेर धान बिना जोती जमीन, पानी भरे गड्ढे आदि में उगता है कमरछठ के दिन उपवास रखने वाली स्त्रियों को जूते हुए जमीन में उपजे किसी भी चीज का सेवन निषेध होता है
आठे गोकुल :- कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व है
पोला :- इस दिन किसान अपने पैरों को सजा कर पूजा अर्चना करते हैं बच्चे मिट्टी के पलों को सजा कर पूजा कर उससे खेलते हैं
तीजा :- छत्तीसगढ़ का परंपरागत त्योहार भाद्र मास में माता-पिता अपनी बिहाई लड़कियों को उसके ससुराल से मायके लाते हैं तीजा में स्त्रियां निर्जला उपवास रखती है दूसरे दिन शिव पार्वती की पूजा करने के बाद उपवास तोड़ती है
गणेश चतुर्थी :- भाद्र मास के चौथे दिन गणेश भगवान की स्थापना की जाती है
पितर (पितृ मोक्ष|) :- अश्विनी मास में मृतकों को उनकी मृत्यु तिथि के अनुसार तर्पण दिया जाता है ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष में मृतक अपने मृत्यु तिथि के दिन मृतक अपने परिवार वालों के घर आते हैं जिन का आव भाव किया जाता है घर में पकवान आदि बनाया जाता है और इन्हीं सामानों को हवन में डाला जाता है जिससे या माना जाता है कि मृतक ने भोजन प्राप्त कर लिया है या पक्ष 15 दिनों तक चलता है